ओडिशा बुलाते समुद्र तट, लुभाते आकर्षक मंदिर
500 किलोमीटर लंबे समुद्रतट से घिरा ओडिशा दुनिया का सब से बेहतरीन समुद्रतट माना जाता है
जो पर्यटकों को सदियों से अपनी ओर लुभाता रहा है. पुरी, चांदीपुर, गोपालपुर, कोणार्क, पारादीप,
बालेश्वर, चंद्रभागा, पाटा सोनापुर, तलसारी जैसे समुद्रतटों की खूबसूरती और कोणार्क, लिंगराज,
जगन्नाथ जैसे ऐतिहासिक मंदिर पर्यटकों को बारबार आने के लिए मजबूर करते रहे हैं. ओडिशा में
एक नया टूरिस्ट स्पौट लवर्स पौइंट पर्यटकों के लिए खासा आकर्षण बन गया है. इसे ओडिशा पर्यटन
की ओर से बनाया गया है. इसे एडल्ट टूरिस्ट स्पौट भी कहा जाता है. पुरी समुद्रतट और चंद्रभागा
समुद्रतट के बीच विकसित किए गए लवर्स पौइंट पर रोज हजारों एडल्ट पर्यटक पहुंचते हैं और जीवन
की रंगीनियों का खुल कर लुत्फ उठाते हैं. पुरी समुद्रतट से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर बने इस
पौइंट पर बड़ेबड़े पत्थरों को रखा गया है और काफी घने पेड़ लगाए गए हैं. पेड़ों, पत्थरों और समुद्र
की गर्जना के बीच दुनिया के कोलाहल से दूर प्रेमी जोड़े यहां मुहब्बत का अनोखा आनंद महसूस करते हैं.
ओडिशा की मशहूर चिल्का झील भारत की सब से बड़ी और दुनिया की दूसरी सब से बड़ी समुद्री
झील है. इसे चिलिका झील के नाम से भी पुकारा जाता है. 70 किलोमीटर लंबी और 30 किलोमीटर
चैड़ी चिल्का झील पर मानो प्रकृति कुछ खास ही मेहरबान रही है. इस झील की प्राकृतिक सुंदरता के
साथ एक बड़ी खासीयत यह है कि दिसंबर से जून महीने तक इस का पानी खारा रहता है और
बारिश के मौसम में इस का पानी मीठा हो जाता है. इस झील में बोटिंग का आनंद लिया जा सकता है.
पर्यटकों को लुभाने वाली जैव संपदाओं और समुद्री मछलियों से भरपूर चिल्का झील से करीब डेढ़
लाख मछुआरों की रोजीरोटी चलती है. ओडिशा के तकरीबन 150 गांवों के लोगों का गुजारा इसी झील
के जरिए चलता है. चिल्का झील समुद्री मछलियों, झींगा मछली, केकड़ा, समुद्री शैवालों, समुद्री बीजों
और लघु शैवालों से भरी पड़ी है. इस झील के आसपास 160 प्रजातियों के पक्षियों का विचरण स्थल
है. कैस्पियन सागर, अरब सागर, मंगोलिया, रूस, मध्य एशिया, लद्दाख समेत कई देशों से आए
पक्षियों के झुंड चिल्का झील की खूबसूरती में चारचांद लगा देते हैं. यह भुवनेश्वर से करीब 70
किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. रहने के लिए कई रिजौर्ट हैं, नीलाद्रि रिजौर्ट उन में से एक है.
ओडिशा के गोल्डन तट से 50 किलोमीटर की दूरी पर बसे नीलाद्रि रिजौर्ट में पर्यटकों के लिए हर
सुविधाएं मौजूद हैं और वहां से ओडिशा के कई पर्यटनस्थलों की दूरी काफी कम है. करीब डेढ़
किलोमीटर की दूरी पर जगन्नाथ टैंपल है तो कोणार्क सूर्य मंदिर 37 किलोमीटर की दूरी पर है.
ओडिशा का पुरी समुद्रतट देशविदेश के टूरिस्टों का पसंदीदा टूरिस्ट स्पौट है. जगन्नाथपुरी मंदिर से 3
किलोमीटर की दूरी पर स्थित पुरी समुद्रतट पर फैली बालू पर बैठ कर समुद्र की अठखेलियों के साथ
सूर्योदय व सूर्यास्त के विहंगम दृश्य का लुत्फ उठाया जा सकता है. पुरी के समुद्रतट की खूबसूरती
पर्यटकों को लुभाती रही है. पुरी का जगन्नाथपुरी मंदिर का परिसर 4 लाख वर्गफुट में फैला हुआ है.
मंदिर का मुख्य ढांचा 65 मीटर ऊंचे पत्थर के चबूतरे पर बना हुआ है. हर साल जूनजुलाई में होने
वाली रथयात्रा पर्यटकों को आकर्षित करती रही है. पुरी रेलवे स्टेशन से पुरी समुद्रतट महज 2
किलोमीटर की दूरी पर है. यहां का सब से नजदीकी हवाई अड्डा भुवनेश्वर का बीजू पटनायक
एअरपोर्ट 60 किलोमीटर दूर है.
कोणार्क सूर्य मंदिर भी ओडिशा का मुख्य पर्यटनस्थल है. यूनेस्को ने इसे साल 1884 में विश्व धरोहर
स्थल घोषित किया था. लाल बलुआ पत्थर और काले ग्रेनाइट से बना यह मंदिर कलिंगा
स्थापत्यकला का अद्भुत नमूना है और इसे ब्लैक पैगोडा के नाम से भी जाना जाता है. रथ के रूप
मेें बने इस मंदिर में 7 घोड़े और 12 जोड़े पहिए बने हुए हैं. 13वीं सदी में बने इस मंदिर की बाहरी
दीवारों पर स्त्रियों व पुरुषों की कई काम मुद्राएं उकेरी हुई हैं. यह भुवनेश्वर से करीब 40 किलोमीटर
और पुरी से 35किलोमीटर की दूरी पर है. बस और टैक्सी के जरिए आसानी से कोणार्क पहुंचा जा सकता है.
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में 990 एकड़ यानी 400 हेक्टेअर में फैले नंदन कानन बोटैनिकल
गार्डन में हर तरह के जंगली जानवरों व पक्षियों को नजदीक से देखने का आनंद लिया जा सकता है.
1979 में आम लोगों के लिए खोले गए इस बोटैनिकल गार्डन में 67 स्तनधारी जानवरों की
प्रजातियों, 81 पक्षियों की प्रजातियों, 18 सरीसृप प्रजातियों समेत 166 प्रजातियों के जानवरों की
भरमार है. सफेद बाघ और घड़ियाल इस के रोमांच व सुंदरता को कई गुना ज्यादा बढ़ा देते हैं. यह
गार्डन भुवनेश्वर स्टेशन से महज 12 किलोमीटर की दूरी पर है. सिमलीपाल नैशनल पार्क घने जंगल
और जंगली जानवरों से भरा पड़ा है. ओडिशा के मयूरभंज जिले में स्थित यह पार्क 845.70 वर्ग
किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इस नैशनल पार्क में सिमल यानी लाल कपासों की भरमार है,
इसलिए इसे सिमलीपाल नाम दिया गया है. इस पार्क में हर समय हाथियों की चिंघाड़ और बाघों की
गर्जना सुनाई देती है. इस में 432 हाथी और 99 बाघों का डेरा है. इस के अलावा हिरण, गौर और
चैसिंगे इस नैशनल पार्क में भरे हुए हैं. सिमलीपाल नैशनल पार्क की एक ओर बड़ी खूबसूरती जोरांडा
और बरेहीपानी जैसे कलकल- छलछल करते झरने हैं. दोनों झरने पर्यटकों को अपने पास ठहरने को
मजबूर कर देते हैं. इस नैशनल पार्क में रात गुजारने के लिए पर्यटकों के लिए तंबुओं का भी इंतजाम
किया गया है. घना रहस्यमयी जंगल, झरने और पहाड़ियां इस नैशनल पार्क को दुनिया के बाकी
नैशनल पार्कों से अलग खड़ा करते हैं. यह नैशनल पार्क भुवनेश्वर से 200 किलोमीटर और बालेश्वर
से 400 किलोमीटर की दूरी पर है.
इन टूरिस्ट स्पौटों के अलावा लिंगराज मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, राजारानी मंदिर, धौलागिरी हिल्स,
उदयगिरी, हीराकुंड बांध, भीतर कनिका राष्ट्रीय उद्यान भी ओडिशा के पर्यटन की पहचान हैं. मंदिर
अंधविश्वास को तो जगाते हैं पर अपनी वास्तुकला के लिए इन्हें देखना तो अनिवार्य सा ही है. जहां
मंदिर पूजापाठ का केंद्र हैं वहीं बेहद भीड़ और गंदगी है पर बहुत से मंदिर सिर्फ अपनी सुंदर मूर्तियों
व सांस्कृतिक कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध हैं. पर्यटन के तौर पर आप यह भी देखें कि हमारी वास्तु
धरोहर कैसी है और यह भी कि आज भी हमारा समाज कैसे अंधभक्ति पर पैसे लुटा रहा है.
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