मुस्लिम देशों ने भी पाकिस्तान से पल्ला झाड़ा, सऊदी, तुर्की, ईरान भारत के साथ

इस्लामाबाद, 03 मई । पहलगाम के बाद पूरी दुनिया भारत के साथ खड़ी है। इसमें

इस्लामिक देश भी शामिल हैं। भारतीय कूटनीतिक सूत्रों ने बताया कि ज्यादातर मुस्लिम देश

पाकिस्तान के साथ धार्मिक एकजुटता दिखाने से ज्यादा अपने भू-राजनीतिक और आर्थिक फायदों को

प्राथमिकता दे रहे हैं। यह रुख 2019 में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के दौरान भी देखा गया था।

तब मुस्लिम दुनिया ने पाकिस्तान के साथ खड़े होने से परहेज किया था। ईरान और तुर्की कूटनीतिक

एकजुटता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, जबकि खाड़ी देश आर्थिक और क्षेत्रीय स्थिरता को महत्व दे रहे

हैं। ईरान ने पहले ही तनाव कम करने के लिए मध्यस्थता का प्रस्ताव दिया है और खुद को

पाकिस्तान का समर्थन करने के बजाय एक न्यूट्रल पक्ष के रूप में स्थापित किया है। आइए समझें

मुस्लिम देशों का क्या रुख रहा।

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), और कतर जैसे खाड़ी देश भारत के साथ व्यापार, ऊर्जा

निर्यात, और लेबर क्षेत्र में जुड़े हैं। सूत्रों के अनुसार, ये देश पाकिस्तान का बिना शर्त समर्थन करने

से बच रहे हैं, क्योंकि भारत उनके लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार है। कतर ने भी इस मामले

में तटस्थता बरती है। 2017-2021 की खाड़ी नाकाबंदी के बाद उसकी विदेश नीति आर्थिक स्थिरता

और क्षेत्रीय विवादों में तटस्थ रहने पर केंद्रित है। अनुच्छेद 370 के दौरान कतर ने भारत की निंदा

करने से बचते हुए बातचीत की वकालत की थी। यूएई ने सिंधु जल संधि के निलंबन पर भारत की

आलोचना की, लेकिन पाकिस्तान का खुलकर समर्थन नहीं किया। 2024 में भारत के साथ यूएई का

85 बिलियन डॉलर का व्यापार और भारतीय श्रम व निवेश पर उसकी निर्भरता उसे संतुलित रुख

अपनाने के लिए मजबूर करती है। 2019 में यूएई ने अनुच्छेद 370 को भारत का आंतरिक मामला

बताया था, जो दोनों देशों के बीच मजबूत व्यापार और सुरक्षा सहयोग का प्रतीक था।

ईरान ने पहलगाम हमले के बाद तनाव कम करने के लिए मध्यस्थता का प्रस्ताव रखा है और खुद

को तटस्थ पक्ष के रूप में पेश किया है। अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के समय ईरान ने चुप्पी

साधे रखी थी, क्योंकि वह अमेरिका और सऊदी अरब के साथ अपने तनाव से जूझ रहा था। सूत्रों का

कहना है कि ईरान की मौजूदा कूटनीति क्षेत्रीय स्थिरता और भारत के साथ आर्थिक संबंधों को बनाए

रखने की कोशिश है। ईरान भारत को एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार मानता है, खासकर चाबहार

बंदरगाह परियोजना के संदर्भ में, और इसलिए वह पाकिस्तान के पक्ष में खुलकर नहीं बोल रहा।

तुर्की ने ऐतिहासिक रूप से कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का समर्थन किया है, लेकिन इस बार उसका

रुख संयमित है। 2024 में भारत के साथ तुर्की का 10 बिलियन डॉलर का व्यापार उसे भारत से

टकराव से बचने के लिए मजबूर कर रहा है। अनुच्छेद 370 हटाने के दौरान तुर्की ने संयुक्त राष्ट्र के

हस्तक्षेप की मांग की थी और भारत की आलोचना की थी, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इस

बार तुर्की की प्रतिक्रिया कूटनीतिक बयानों तक सीमित है, जो भारत के साथ आर्थिक संबंधों को

बनाए रखने और टकराव से बचने की उसकी कोशिश को दिखाता है।

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