आने वाली पीढि़यों के लिए प्राकृतिक संसाधानों का संरक्षण जरुरी : प्रो. बलदेव राज कांबोज
तकनीक की मदद से बचे समय का सदुपयोग करें किसान तो बदल सकता है जीवन..
फसल अवशेषों का सही से प्रबंधन करें किसान, फसल अवशेष प्रबंधन है समय की मांग...
कृषि विज्ञान केंद्र कैथल की ओर से गांव बाता में किया गया जिला स्तरीय फसल अवशेष प्रबंधन किसान मेले का आयोजन..
कैथल 13 मार्च: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बलदेव राज कांबोज ने कहा कि सभी किसान फसल अवशेषों का सही से प्रबंधन करें। फसल अवशेष, अवशेष नहीं बल्कि किसान भाइयों के लिए विशेष है तथा फसल अवशेष प्रबंधन समय की मांग है। ऐसा करने से जहां किसान की आय बढ़ेगी, वहीं हमारा वातावरण भी शुद्ध रहेगा और जमीन की उर्वरा शक्ति मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना होगा, क्योंकि धरती मां (भूमि) इंसान को कभी भूखा मरने नहीं देती, लेकिन इसके लिए हमें अपने कर्म को ईमानदारी के साथ करना होगा। किसान को समय पर एवं सही तरीके से उन्नत किस्म के बीज बोने होंगे और वैज्ञानिकों को समय समय पर किसानों को मार्गदर्शन करना होगा।चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज वीरवार को कृषि विज्ञान केंद्र कैथल की ओर से गांव बाता में आयोजित जिला स्तरीय फसल अवशेष प्रबंधन किसान मेले में किसानों को संबोधित कर रहे थे। प्रो. बीआर कांबोज ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन है कि देश को वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनाना है। हमें मिलकर उनके सपने को साकार करना है और देश को विकसित भारत बनाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभानी है। आज का युग आईटी एवं मशीनीकरण का युग है। जिसकी वजह से समय की काफी बचत होती है। इस समय का व्यर्थ न गवांकर इसका सही सद् उपयोग करना चाहिए। किसानी के साथ साथ सहायक व्यवसाय करने चाहिए तथा अपने प्रोडक्ट बनाकर स्वयं उनको बेचना चाहिए। ऐसा करने से किसान की आय में निश्चित रूप से बढ़ोतरी होगी। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की अगुवाई में प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के कल्याण के लिए अनेकों योजनाएं लागू की हैं। वहीं विश्वविद्यालय द्वारा भी युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए स्टार्ट अप योजना के तहत लाभ दिया जा रहा है।चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. बलवान सिंह मंडल ने कहा कि धान के फानों में आग लगाने से आबो-हवा प्रदूषित होती हैं तथा वायु गुणवत्ता सूचकांक पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं, जिससे आँखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ, हृदय समस्या आदि होती हैं। उन्होंने किसानों का आह्वान किया कि वे फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन करके कृषि विश्वविद्यालय तथा प्रशासन का सहयोग करे और अपनी भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाएं। कृषि विज्ञान केंद्र, कैथल के वरिष्ठ समन्वयक डॉ. रमेश चंद्र वर्मा ने बताया कि पराली जलाने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ने के साथ-साथ जमीनों में उपस्थित मित्र कीट भी नष्ट होते हैं जो हमारी पैदावार पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। जैविक कार्बन भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने का प्रमुख कारक हैं।इस मेले में आसपाल के सैकड़ों किसानों ने भाग लिया और कृषि विज्ञान से संबंधित आधुनिक तकनीको की जानकारी हासिल की। इस अवसर पर प्रगतिशील किसान जॉनी राणा, प्रदीप कुमार, राजेश खेड़ी सिकंदर, पूजा आर्य, रणबीर सिंह एवं फकीर चाँद आदि को सम्मानित किया गया। मेले में विभिन्न कंपनियों एवं किसानों की स्टालें लगाई। इस अवसर पर सतीश जिंदल, डॉ. प्रसून सिंह नरवाल सहित अन्य लोग मौजूद रहे।
Comments
Post a Comment