लोहड़ी हर्ष और उल्लास का पर्व ...


लोहड़ी हर्ष और उल्लास का पर्व है। लोहड़ी के पर्व की दस्तक के साथ ही पहले सुंदर मुंदरिए दे माई लोहड़ी जीवे तेरी जोड़ी आदि लोक गीत गाकर घर-घर लोहड़ी मांगने का रिवाज है। समय बदलने के साथ कई पुरानी रस्मों का आधुनिकीकरण हो गया है। लोहड़ी पर भी इसका प्रभाव पड़ा। अब गांव में लड़के-लड़कियां लोहड़ी मांगते हुए परम्परागत गीत गाते दिखलाई नहीं देते। गीतों का स्थान डीजे  ने ले लिया।लोहड़ी की रात को यह त्यौहार छोटे बच्चों एवं नव विवाहितों के लिए विशेष महत्व रखता है। लोहड़ी की संध्या में जलती लकड़ियों के सामने नवविवाहित जोड़े अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाए रखने की कामना करते हैं।लोहड़ी का संबंध नए जन्मे बच्चों के साथ ज्यादा है पुराने समय से ही यह रीत चली आई है कि जिस घर में लड़का जन्म लेता है उस घर में धूमधाम से लोहड़ी मनाई जाती है। लोहड़ी से कुछ दिन पहले गुड़ बांटा जाता है और लोहड़ी की रात सभी गांव वाले लड़के वाले घर आते हैं और लकड़ियां. उपले आदि से अग्नि जलाई जाती है। सभी को गुड़. मूंगफली. रेवड़ी. तिल घानी बांटे जाते हैं। आजकल लोग कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए लड़कियों के जन्म पर भी लोहड़ी मनाते हैं ताकि  लड़के-लड़की का अंतर खत्म किया जा सके। लोहड़ी की पवित्र आग में तिल डालने के बाद बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता है।


लोहड़ी पर्व  रिश्तों की मधुरता और प्रेम का प्रतीक है..

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