अजा एकादशी व्रत भगवान विष्णु जी को अति प्रिय.. राजा हरिश्चंद्र ने एकादशी का व्रत रखा..

अजा एकादशी भगवान विष्णु जी को अति प्रिय है इसलिए इस एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु और साथ में मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे अन्नदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान ध्यान करें..
अब भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाकर. फलों तथा फूलों से भक्तिपूर्वक पूजा करें..
पूजा के बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें..
दिन में निराहार एवं निर्जल व्रत का पालन करें..
इस व्रत में रात्रि जागरण करें..
द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद उन्हें दान-दक्षिणा दें..
फिर स्वयं भोजन करें।अजा एकादशी पारणा मुहूर्त  07:52:04 से 08:31:29 तक 30, अगस्त को
अवधि : 0 घंटे 39 मिनट.
समाप्त होने का समय : 07:52:04 पर 30.अगस्त..
हिन्दू धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक राजा हरिश्चन्द्र अपनी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। एक बार देवताओं ने इनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई। राजा हरिश्चन्द्र   ने स्वप्न में देखा कि ऋषि विश्वामित्र को उन्होंने अपना राजपाट दान कर दिया है। अगले दिन राजा हरिश्चन्द्र विश्वामित्र को अपना समस्त राज-पाठ को सौंप कर जाने लगे तो विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से दक्षिणा स्वरुप 500 स्वर्ण मुद्राएं दान में मांगी।राजा ने उनसे कहा कि पांच सौ क्या, आप जितनी चाहे स्वर्ण मुद्राएं ले लीजिए। विश्वामित्र हंसने लगे और राजा को याद दिलाया कि राजपाट के साथ राज्य का कोष भी वे दान कर चुके हैं और दान की हुई वस्तु को दोबारा दान नहीं किया जाता। तब राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचकर स्वर्ण मुद्राएं हासिल की लेकिन वो भी पांच सौ नहीं हो पाईं। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को भी बेच डाला और सोने की सभी मुद्राएं विश्वामित्र को दान में दे दी। राजा  ने खुद को जहां बेचा था वह श्मशान का चांडाल था। चांडाल ने राजा हरिश्चन्द्र को श्मशान भूमि में दाह संस्कार के लिए कर वसूली का काम दे दिया।एक दिन राजा हरिश्चंद्र ने एकादशी का व्रत रखा हुआ था। आधी रात का समय था और राजा श्मशान के द्वार पर पहरा दे रहे थे।निर्धन स्त्री बिलखते हुए पहुंची जिसके हाथ में अपने पुत्र का शव था। राजा हरिश्चन्द्र ने अपने धर्म का पालन करते हुए पत्नी से भी पुत्र के दाह संस्कार हेतु कर मांगा। पत्नी के पास कर चुकाने के लिए धन नहीं था इसलिए उसने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा फाड़कर राजा का दे दिया।उसी समय भगवान प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा हे हरिश्चंद्र इस संसार में तुमने सत्य को जीवन में धारण करने का उच्चतम आदर्श स्थापित किया है। तुम्हारी कर्तव्यनिष्ठा महान है तुम इतिहास में अमर रहोगे। इतने में ही राजा का बेटाजीवित हो उठा। ईश्वर की अनुमति से विश्वामित्र ने भी हरिश्चंद्र का राजपाट उन्हें वापस लौटा दिया।

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